थर्ड आई न्यूज@चित्तौड़गढ़।।
नीलेश कांठेड़, वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व चीफ रिपोर्टर, राजस्थान पत्रिका।।

वाहन रैलियां निकल रही है, नारों का शोर है, हर तरफ आवाजे गूंज रही बस अब कोरोना को हराने वाले है। ये शौर इस कदर है कि मानों इससे डरकर ही कोरोना पीठ दिखा भाग जाएगा । एक तरफ सरकार से लेकर विपक्ष, अधिकारियों से लेकर सामाजिक संगठन मास्क बांट या जागरूकता रैलियां निकाल स्वयं को कोरोना से निपटने के लिए सचेत साबित करने की होड़ में है। होड़ इस कदर मची है कि जिस व्यक्ति को पांच-छह बार मास्क दे चुके वो फिर भी बिना मास्क ही घूम रहा है। ये पूछने की फुरसत किसी को नहीं लगती कि जो मास्क बांट रहे वो कहां जा रहे है या चेहरे फिर भी बिना मास्क क्यों नजर आ रहे है। दो-तीन दिन पहले चित्तौड़गढ़ से भीलवाड़ा आते समय मार्ग मेें उत्साही अंदाज लिए दस-बारह युवा क्रिकेट खेल आते दिखे। सब पास-पास थे, चेहरे पर किसी के नहीं मास्क थे। कोरोना की चुनौती उन्हें नहीं डरा रही थी। उन सभी के परिवार क्या इससे बेखबर है या जीने की इच्छा समाप्त होती जा रही ये सोच मुझे अंदर से खाए जा रही है। समझाने का दम भरने वालों की कथनी व करनी में हर जगह नजर आता है, इसीलिए तो कोरोना से तो जीते नही ंहम पर आंकड़ो में सुधार जरूर आता है । समझ ले हम सभी ये बात सुधरे नहीं हम तो कोरोना पहली झांकी है, प्रकृति के कई दण्ड झेलना अभी बाकी है। चेहरे पर मास्क पुलिस के चालान से बचने के लिए नहीं हमारे भविष्य के सपनों को साकार करने के लिए जरूरी है।
0 टिप्पणियाँ